अर्थव्यवस्था: इस वर्ष भी जारी रह सकते हैं भारतीय अर्थव्यवस्था के अच्छे नतीजे,
वर्ष 2024 भारतीय अर्थव्यवस्था, शेयर बाजार और रुपये के लिए एक और अच्छा साल साबित होने वाला है। घरेलू और वैश्विक, दोनों स्तर पर सभी कारक भारत के लिए सकारात्मक हैं। दुनिया भर में 70 से ज्यादा देशों में इस वर्ष चुनाव होने वाले हैं, इसलिए काफी राजनीतिक सरगर्मी और संभावित बदलाव देखने को मिलेंगे। हालांकि दुनिया को वर्ष 2024 में मंदी की आशंका है, पर ज्यादातर देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं में तेज सुधार और मंदी से बचने की उम्मीद कर रहे हैं। इस वर्ष वैश्विक विकास दर दो फीसदी के करीब रहने का अनुमान है। भारत में सबसे अधिक वृद्धि दर रहने की उम्मीद है, वास्तविक विकास के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 6.5 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान है, जबकि नॉमिनल आधार पर 11 फीसदी का अनुमान है।
अमेरिकी ब्याज दरों में कटौती से आम तौर पर डॉलर कमजोर होता है। साथ ही इससे उभरते बाजारों की अर्थव्यवस्थाओं में विदेशी पोर्टफोलियो के प्रवाह में वृद्धि होती है। यह वर्ष 2024 में भारत में विदेशी धन का प्रवाह बढ़ाने के लिए अनुकूल स्थिति है। कच्चे तेल की गिरती कीमत इस वर्ष वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक और सकारात्मक संकेत है।
इस अनुकूल वैश्विक पृष्ठभूमि में भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावना अनुकूल दिख रही है। बढ़ते प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण, चालू खाता घाटा और रुपये की बढ़ती स्वीकार्यता जैसे प्रमुख मानदंडों पर भारत वास्तविक रूप से ‘अमृत काल’ का आनंद ले रहा है। बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकारी खर्च में भारी बढ़ोतरी अगले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था को काफी आर्थिक फायदा पहुंचाएगी। सड़क, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे और जलमार्ग-सभी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने से वर्ष 2024 की दूसरी छमाही में निजी पूंजी व्यय में भारी वृद्धि होने की उम्मीद है। बुनियादी ढांचे पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये का आर्थिक उत्पादन या जीडीपी की वृद्धि पर चार से छह गुना प्रभाव पड़ता है।
इस वर्ष अप्रैल-मई में होने वाले संसदीय चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन को एक और कार्यकाल मिलने की उम्मीद से नीति निरंतरता की उच्च संभावना है। इससे क्षमता विस्तार और हरित परियोजनाओं को शुरू करने के लिए निवेशकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा। वर्ष 2023 में रिकॉर्ड संख्या में आवास खरीदे गए। आवास क्षेत्र में तेजी से बढ़ती कमाई और भारी मांग को देखते हुए रियल एस्टेट क्षेत्र में अगले सात से दस वर्ष तक तेजी रहने की संभावना है।
अगले कुछ वर्षों तक कॉरपोरेट आय वृद्धि भी 14-15 फीसदी के दायरे में रहने उम्मीद है। यह शेयर बाजार सूचकांकों के उछाल में भी परिलक्षित होता है, जो वर्ष 2023 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया और उम्मीद है कि इस वर्ष भी यही रफ्तार बनी रहेगी। कॉरपोरेट बैलेंस शीट से जोखिमों को खत्म कर दिया गया है और पिछले कुछ वर्षों में ऋण का स्तर भी घट गया है। बैंकों ने अनियोजित खर्च के लिए अलग से पूंजी कोष (कैपिटल बफर्स) तैयार किया है और एनपीए से संबंधित समस्याएं खत्म की हैं।
कॉरपोरेट घरानों को अपनी विकास जरूरतों के लिए शेयर बाजारों, बांड बाजारों और बैंकों और गैर-बैंक से धन उपलब्ध हो रहा है। वैश्विक बांड सूचकांकों में भारत के शामिल होने से भारतीय बांड बाजारों में भी दीर्घकालिक विदेशी फंडों का बड़ा प्रवाह होगा। इससे धन जुटाने की लागत कम हो जाएगी और भारतीय बांड बाजार समृद्ध होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने मई, 2022 में ब्याज दरों में 250 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी की थी। उम्मीद है कि रिजर्व बैंक इस वर्ष जुलाई-अगस्त में दरों में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती करेगा। वर्ष के अंत तक भारत के दस-वर्षीय सरकारी बांड की रिटर्न लगभग 6.6-6.75 फीसदी पर स्थिर रहने की उम्मीद है।
अमेरिकी, यूरोपीय और चीनी अर्थव्यवस्था में मंदी का जोखिम है, जो भारत के विकास को भी धीमा कर देगा। भू-राजनीतिक जोखिम के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान या तेल की कीमतों में वृद्धि का भी जोखिम है। इसके अलावा अल नीनो प्रभाव से कमजोर मानसून चुनौती पैदा कर सकता है। ग्रामीण मांग कमजोर है और कृषि अर्थव्यवस्था पर किसी भी अन्य प्रभाव से ग्रामीण क्रय क्षमता पर भी असर पड़ेगा।
शेयर बाजार में बड़ी कंपनियां (लार्ज कैप्स) इस वर्ष बेहतर प्रदर्शन करेंगी, जबकि छोटी व मंझोली कंपनियों ने पहले ही 2023 में शानदार प्रदर्शन किया है। घरेलू उन्मुख क्षेत्र, जैसे बैंक एवं अन्य वित्तीय क्षेत्र-म्यूचुअल फंड से बीमा कंपनियों तक, पसंदीदा क्षेत्र होंगे। बुनियादी ढांचा, बिजली, निर्माण, रियल एस्टेट, रेलवे, रक्षा क्षेत्र से जुड़े शेयर भी अपने राजस्व और कमाई में वृद्धि जारी रखेंगे। आईटी सेक्टर के शेयरों को फिर गति पकड़ने में कुछ तिमाही लगेंगे, क्योंकि वैश्विक मंदी के कारण ऑर्डर प्रवाह और कमाई सुस्त रहने का अनुमान है। कई वर्षों के खराब प्रदर्शन के बाद फर्मा क्षेत्र के शेयर भी आकर्षक लग रहे हैं।
विदेशी निवेश के अधिक प्रवाह और कमजोर अमेरिकी डॉलर से भारतीय रुपये को डॉलर के मुकाबले दो-तीन फीसदी की बढ़त पाने में मदद मिलेगी। रुपया आधारित व्यापार के द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय समझौतों को बढ़ावा मिलेगा, खासकर मध्य पूर्व एवं अफ्रीकी देशों के साथ। हालांकि रुपये को विश्व स्तर पर स्वीकृत आरक्षित मुद्रा बनने में अभी लंबा समय लगेगा, लेकिन इस दिशा में कुछ प्रगति अवश्य होगी।
कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था इस वर्ष भी पिछले वर्ष के अच्छे परिणामों को जारी रख सकती है, क्योंकि भारत को राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक नीति की स्थिरता और चीन की प्लस वन रणनीति का लाभ मिल रहा है। इस वर्ष भी भारतीय बाजारों में करीब 12-15 फीसदी रिटर्न की उम्मीद है।